Yuge -Yuge Ram Book Review In Hindi आपका हृदय जब भी अशांत तो हो, तब प्रभु का नाम सबसे बड़ा सहारा है. इसके अतिरिक्त हृदय की अशांति दूर करने का कोई दूसरा उत्तम मार्ग भला क्या हो सकता है? इस संसार के भवसागर में अक्सर ही ऐसी परिस्थितियां आती हैं, कि मनुष्य भिन्न भिन्न झंझावातों में फंस ही जाता है। ऐसे में तनाव के क्षणों से बाहर निकलने का मार्ग सिर्फ एक ही है, और वह मार्ग है- जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत बिश्रामा॥ यह कोई एक या दो वर्ष पुराना मंत्र नहीं है, बल्कि इसकी महिमा कालजयी है । आधुनिक विज्ञान के दौर में भी अगर मानव मन में धर्म की महिमा शेष है, तो उसके पीछे यही सूत्र तो है! जब कोई भी मार्ग नजर नहीं आता है, तब प्रभु की शरण में हर व्यक्ति पहुँचता है। इसी सन्दर्भ में कबीरदास कहते हैं कि 'दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय। इसका अभिप्राय बड़ा स्पष्ट है कि प्रभु का नाम हमेशा ही क्यों न लिया जाए! और अगर आप हमेशा उन्हें याद करते हैं, तो आपका मन फिर अशांत हो ही नहीं सकता । सांसारिक झंझावातों से निकलने का मार्ग आपको सहज ही प्राप
Ideal Age For A Child To Start School (Pic: scoonews ) आजकल के कंपटीशन भरे जमाने में हर कोई आगे बढ़ना चाहता है, फिर चाहे वह किसी भी उम्र का क्यों ना हो! आगे बढ़ने की दौड़ में तो अब छोटे बच्चे भी शामिल हो गए हैं, माता पिता द्वारा बच्चों को उनकी स्कूल जाने वाली उम्र समय से पहले ही उन्हें स्कूल भेजना शुरू कर दिया जा रहा है। बच्चे 2 से 5 साल की उम्र के बीच शारीरिक और मानसिक रूप से बढ़ रहे होते हैं, आज उसी उम्र में उन्हें स्कूल में दाखिला दिलवा कर माता-पिता उनसे उन्हीं का बचपन छीन रहे हैं। जिस उम्र में बच्चों को उठना बैठना भी सही ढंग से नहीं आता, उस उम्र में आज वह किताबों से भरे बैग का बोझ उठा रहे हैं। अधिकतर लोगों को लगता है कि कम उम्र में स्कूल भेजने से बच्चों को शिक्षा का ज्ञान जल्दी हो जाता है, जबकि वो यहां गलत हैं, क्योंकि हर बच्चे का चीजों को समझने और ग्रहण करने का तरीका अलग अलग होता है। सभी बच्चों का मानसिक विकास एक जैसा नहीं होता परंतु माता-पिता एक दूसरे के बच्चों को देखकर अपने बच्चे को भी उन्हीं में शामिल कर देते हैं । बहुत सारे अध्ययन और एक्सपर्ट्स द्वारा यह पता चला है कि बच्
भारतीय संस्कृति में कहा गया है "वसुधैव कुटुंबकम" यानी समस्त विश्व ही परिवार है. निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति के इस दर्शन को विश्व कल्याणकारी माना जाता है. यहाँ आप ऊपर के वाक्य में परिवार (कुटुंब) शब्द पर गौर करें. मतलब साफ है कि अगर हम परिवार की भावना, संवेदना बनाए रखें, तो निश्चित ही समस्त विश्व में शांति व्याप्त हो सकती है, समस्त विश्व में प्रगति सुनिश्चित हो सकती है. यहाँ प्रश्न उठता है कि यह परिवार आखिर है क्या? निश्चित रूप से परिवार एक माता-पिता से, एक कुल खानदान से जुड़े व्यक्तियों के समूह को कहा जाता है. इसका शाब्दिक अर्थ यही है. साधारण शब्दों में जिन लोगों का एक सरनेम हो, जिनका एक कल्चर हो, कॉमन त्योहारों को वह मनाते हों, एक साथ इकट्ठे होकर अपने संस्कार संपन्न करते हों, पारंपरिक रूप से वह परिवार के दायरे में आते हैं. इस उत्सव धर्मिता में परिवार एक साथ तमाम चीजें शेयर करता है, और यह क्रम चलता रहता है, कल्चर बनता जाता है, संवेदना आती रहती हैं. सच कहें तो यही वह कनेक्शन है, जो किसी भी परिवार के मूल में होता है. हालाँकि, आधुनिक समय में परिवार में कुछ चीजें बड़ी तेजी से
Comments
Post a Comment