भारतीय संस्कृति में कहा गया है "वसुधैव कुटुंबकम" यानी समस्त विश्व ही परिवार है. निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति के इस दर्शन को विश्व कल्याणकारी माना जाता है. यहाँ आप ऊपर के वाक्य में परिवार (कुटुंब) शब्द पर गौर करें. मतलब साफ है कि अगर हम परिवार की भावना, संवेदना बनाए रखें, तो निश्चित ही समस्त विश्व में शांति व्याप्त हो सकती है, समस्त विश्व में प्रगति सुनिश्चित हो सकती है. यहाँ प्रश्न उठता है कि यह परिवार आखिर है क्या? निश्चित रूप से परिवार एक माता-पिता से, एक कुल खानदान से जुड़े व्यक्तियों के समूह को कहा जाता है. इसका शाब्दिक अर्थ यही है. साधारण शब्दों में जिन लोगों का एक सरनेम हो, जिनका एक कल्चर हो, कॉमन त्योहारों को वह मनाते हों, एक साथ इकट्ठे होकर अपने संस्कार संपन्न करते हों, पारंपरिक रूप से वह परिवार के दायरे में आते हैं. इस उत्सव धर्मिता में परिवार एक साथ तमाम चीजें शेयर करता है, और यह क्रम चलता रहता है, कल्चर बनता जाता है, संवेदना आती रहती हैं. सच कहें तो यही वह कनेक्शन है, जो किसी भी परिवार के मूल में होता है. हालाँकि, आधुनिक समय में परिवार में कुछ चीजें बड़ी तेजी से
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