उत्सव धर्मिता 'परिवार' का मूल है

भारतीय संस्कृति में कहा गया है "वसुधैव कुटुंबकम"

यानी समस्त विश्व ही परिवार है. निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति के इस दर्शन को विश्व कल्याणकारी माना जाता है. यहाँ आप ऊपर के वाक्य में परिवार (कुटुंब) शब्द पर गौर करें. मतलब साफ है कि अगर हम परिवार की भावना, संवेदना बनाए रखें, तो निश्चित ही समस्त विश्व में शांति व्याप्त हो सकती है, समस्त विश्व में प्रगति सुनिश्चित हो सकती है. 

यहाँ प्रश्न उठता है कि यह परिवार आखिर है क्या?

निश्चित रूप से परिवार एक माता-पिता से, एक कुल खानदान से जुड़े व्यक्तियों के समूह को कहा जाता है. इसका शाब्दिक अर्थ यही है. साधारण शब्दों में जिन लोगों का एक सरनेम हो, जिनका एक कल्चर हो, कॉमन त्योहारों को वह मनाते हों, एक साथ इकट्ठे होकर अपने संस्कार संपन्न करते हों, पारंपरिक रूप से वह परिवार के दायरे में आते हैं.

इस उत्सव धर्मिता में परिवार एक साथ तमाम चीजें शेयर करता है, और यह क्रम चलता रहता है, कल्चर बनता जाता है, संवेदना आती रहती हैं. सच कहें तो यही वह कनेक्शन है, जो किसी भी परिवार के मूल में होता है.

हालाँकि, आधुनिक समय में परिवार में कुछ चीजें बड़ी तेजी से बदली हैं, और इस बदलाव में हमने कहीं ना कहीं उस कनेक्शन को छोड़ दिया है, जो परिवार को, उसकी संवेदना को चिरकालिक रूप से जोड़े रखने मैं सहायक सिद्ध हुआ करता था.
वस्तुतः वह कनेक्शन हमारे उत्सव ही तो हैं!

परिवार में हम भी अनेकों प्रकार के उत्सव मनाते हैं. बच्चे के जन्म से लेकर व्यक्ति के मृत्यु पर्यंत तक, विभिन्न प्रकार के कर्मकांड, विभिन्न प्रकार के उत्सव हम संपन्न करते हैं, और यही परिवार को जोड़े भी रखता है. यही मनुष्य की संवेदना को बनाए रखते हैं. 

जब मनुष्य का जी समाज से उचटने लगता है, तब यह उत्सव उसमें रंग भरने का कार्य करते हैं. 

दीपावली, भैया-दूज, गोवर्धन-पूजा, छठ महापर्व जैसे उत्सव एक भारतीय के जीवन में आते हैं, और उसमें अनंत रंग भर देते हैं. उसका जीवन पुनः सरस हो जाता है, सहज हो जाता है, संवेदना युक्त हो जाता है, और यही संवेदना वसुधैव कुटुंबकम के मूल में है.
तो आइए, इस टेक्नोलॉजी के दौर में अगर हम लोगों से नहीं जुड़ सके हैं, तो तमाम भारतीय एप्लीकेशंस के माध्यम से, अपने परिवार से कनेक्शन स्थापित करें, और यही कनेक्शन हमें संवेदनशील बनाए रखने में सहायक सिद्ध होंगे!

यह ना केवल हमें संवेदनशील बनायेंगे, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी यह कनेक्शन अमृत तुल्य होगा, और उनके संस्कार की जड़ों को सूखने नहीं देगा. तो इस छठ महापर्व पर, आप अपने परिवार से कनेक्ट करना नहीं भूलिएगा!

और हां! इस विचार को, इस लेख रुपी सन्देश को, आप शेयर अवश्य करियेगा.

परिवार कनेक्ट टीम की तरफ से छठ महापर्व की अनंत शुभकामनाएं!

Article Title: उत्सव धर्मिता 'परिवार' का मूल है - Utsav, Celebration is the origin of Family, Sensitivity

Comments

Popular posts from this blog

"युगे युगे राम": 'मिथिलेश दृष्टि' (पुस्तक - समीक्षा)

'ग्रोथ माइंडसेट' और आपका बच्चा, 11 ज़रूरी पॉइंट्स 'Growth Mindset' and your child, 11 important points

बच्चों को सिखाएं बचत का 'हुनर'