अपने बच्चे को 'ना' कहें इस नए अंदाज में!

 

How To Say No To Kids (Pic: babygaga )

' बच्चे मन के सच्चे 'यह वाक्य हम सभी ने सुना ही हैं। बच्चे बहुत प्यारे भी होते हैं और बहुत नादान भी, ऐसे में उन्हें कुछ भी समझाना थोड़ा मुश्किल होता है।  बच्चों को जो चीज अच्छी लगती है उसे पाने की जिद करने लगते हैं फिर चाहे वह चीज उनके लिए   उपयोगी  हो या ना हो। बच्चों को सही - गलत की ज्यादा समझ नहीं होती है, उनके लिए हर कार्य एक खेल के समान है।  ऐसे में वे अपनी बात को मनवाने के लिए जिद करने लगते हैं। उनकी इस आदत को कभी पूरा किया जाता है, तो कभी नजरअंदाज किया जाता है ।

कभी-कभी तो उनकी यह जिद करने की आदत पेरेंट्स के लिए परेशानी का कारण बन जाती है । जिस कारण बच्चों के माता-पिता उन्हें गुस्सा करके या हर बात पर उन्हें ना शब्द का प्रयोग करके उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। जैसे कि उदाहरण के तौर पर  बच्चा अगर बार-बार चॉकलेट या  टॉफी खाने की जिद करता है, तो माता-पिता उसे सीधा मना कर देते हैं, जबकि उन्हें चाहिए कि ना शब्द का प्रयोग करने  की बजाय बच्चों को  टॉफी  और चॉकलेट अधिक खाने के फायदे और नुकसान प्यार से बताएं ताकि वह आपकी बात को समझ सके। 

बच्चों को कुछ भी समझाने के लिए पहले खुद बच्चा बनना पड़ता है। प्यार से समझाएं गई बात को वह सुनेंगे भी और समझेंगे भी  अन्यथा आपके  बार-बार नजर अंदाज करने और ना नूकुर करने वाली  आदत आपके  और आपके बच्चे के  रिश्ते के बीच अनबन पैदा कर   सकती है ।


माता-पिता से बढ़कर  उनके बच्चों को कोई नहीं जान सकता क्योंकि हर बच्चे का स्वभाव और समझने का ढंग अलग अलग होता है ऐसे में शांत स्वभाव और प्यार से ही बच्चों को सही गलत के अंतर को आप समझा सकते हैं ।  माता-पिता द्वारा प्यार से समझाने के तरीके ही बच्चों के मन में  एक आदर सम्मान की भावना पैदा करती हैं।

 तो आइए आज के इस आर्टिकल में हम कुछ आसान  और फायदेमंद टिप्स की बात करेंगे जो आपके और आपके बच्चे के बीच एक मजबूत रिश्ता कायम करेगा .


बच्चों के बने दोस्त-  हर माता-पिता के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह अपने बच्चों के साथ एक दोस्त बन कर रहे ।  यह बात तो आप भी जानते हैं कि दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें हम अपने मन की हर बात को अपने सबसे अच्छे और करीबी दोस्त के साथ साझा करते हैं और उनकी राय मशवरा भी हमको समझ आती है ।  ऐसे में हर माता-पिता को अपने बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह रहना चाहिए ताकि आपके  बच्चे अपनी हर बात  आपके साथ साझा करें और आपके द्वारा दिए गए सुझाव को समझें सके ।  एक दोस्त बनकर अपने बच्चों के साथ समय बिताएं और उनके साथ खेले कूदे,   टीवी देखें और किताबें भी पढ़े, ऐसा करने से वह आपके साथ बहुत कम्फर्ट  फील करेंगे और आपसे कोई भी बात नहीं छुपायेंगे।

 बातों को कहानी द्वारा समझाएं-  बच्चों को कोई भी बात  समझाने के लिए बातों को एक कहानी के जरिए उन्हें सुनाएं  क्योंकि  कहानी सुनना बच्चों  को बहुत पसंद है।  और एक  कहानी द्वारा वह  बहुत सी चीजें सीखते और समझते हैं, यहां तक कि बातो को अपनाते भी हैं। जब भी आपका बच्चा किसी भी बात या चीज के लिए जिद करे तो  सीधी बात में  ना' न कहकर  उन्हें बातों को कहानी बनाकर सुनाएं ऐसा करने से बच्चों को आपकी बातें सुनने का मन भी करेगा और कहानी का मोरल भी समझ आयेगा।  कहानी आप  मुंहजुबानी,  या किसी वीडियो के जरिए भी सुना सकते हैं।

 सीधा 'ना' और 'हां' न कहें-  अधिकतर माता-पिता बच्चों के साथ ज्यादा बातें नहीं करते। वह बच्चों को सीधा हां और ना में जवाब देना जरूरी समझते हैं, जबकि यह सरासर गलत आदत है । माता-पिता अपनी इस आदत को छोड़कर अपने बच्चों के साथ थोड़ी देर बातचीत करें, खुद भी उनकी बातों को समझें और बच्चों को भी अपनी बात समझाने का मौका दें । आप यह बात तो जानते  ही है, बड़ों को इशारों में या एक शब्द के साथ हर चीज समझ आ जाती है, परन्तु उसके विपरीत बच्चों को इशारों में समझाई गई बातें समझ नहीं आती इसीलिए उन्हें उन्हीं की भाषा में बात करके चीजों को समझाया जा सकता है।

 प्लीज और सॉरी शब्द का प्रयोग करें-  आप अपने बच्चों के साथ 'गिव रिस्पेक्ट एंड टेक रिस्पेक्ट' वाले फार्मूले को अपनाएं। कहते हैं न कि बच्चे अपने परिवार से ही हर चीज सीखते हैं, ऐसे में उनके अंदर अच्छी आदतें भरने से पहले खुद को अच्छे आदतों  में डालें और कुछ भी चीज लेने और देने के समय प्लीज, एक्सक्यूज़ मी, आदि रिस्पेक्टफुल शब्दों का प्रयोग करें ।अगर आप से कोई गलती हो जाए तो वहां पर सॉरी जैसे शब्दों का प्रयोग करे, आपकी यह आदत बच्चों को बहुत प्रभावित कर सकती है और वे भी आपसे इस आदत को सीख सकते हैं।

 सच्चे वादे  करें-   बच्चों के साथ कभी भी झूठे वादे ना करें,आपकी यह आदत आप पर भी भारी पड़ सकती है। ऐसे में अगर बच्चा किसी चीज की जिद कर रहा हो तोः उसे समझाएं कि यह काम बाद में हो सकता है और सच्चे  वादे के साथ बच्चों के वह कार्य जरूर कर दे। ऐसा करने से बच्चों का आप पर विश्वास बना रहेगा और जाहिर सी बात है कि वे  अगली बार आपसे किसी भी प्रकार कि जिद नहीं करेंगे। 


चीजों को प्रैक्टिकल करके  दिखाएं-  बच्चों को समझाने का सबसे आसान तरीका है कि आप उनकी द्वारा की गई बातों को  एक प्रैक्टिकल  तरीके  से  करके उन्हें दिखाएं  साथ के साथ उसके फायदे और नुकसान भी बताएं। इसके लिए आप यह कार्य खुद करें या  किसी मोरल (अच्छी यूज़फुलफुल) वीडियो के साथ उन्हें दिखाएं। 

उदाहरण के तौर पर;  जैसे कि  अधिकतर बच्चे  धूल -मिट्टी,  तीखी चीज या अन्य कोई भारी-भरकम चीजों के साथ खेलने की जिद करते हैं, तो आप उन्हें सीधा मना करने की बजाय उनके साथ उन्हीं चीजों को साथ खेल कर  और होने वाले नुकसान के बारे में दिखाएं ऐसा करने से  बच्चे काफी हद तक जिद करना छोड़ देंगे। बच्चों को समझाएं कि  चाकू याअन्य तीखी चीजों के  साथ खेलने से उन्हें चोट भी लग सकती है और कुछ चीजों का प्रयोग केवल  कार्यों में ही किया  जाता है खेलने के लिए नहीं।

 एक चीज की जगह बहुत सारे विकल्प दें- अगर आपका बच्चा आपसे किसी भी तरीके की चीजों की डिमांड करता है, जो कि उसे सही गलत का नहीं पता तो वहां पर आप  समझदार बन जाए,  बच्चों को सीधा-सीधा मना करने की बजाय  बच्चों द्वारा डिमांड की गई चीज़ो के  फायदे और नुकसान बताते हुए उन्हें एक चीज की जगह फायदेमंद होने वाली चीजों के विकल्प दे। ऐसा करने से बच्चा आपकी बात को समझेगा भी और आप द्वारा दिए गए विकल्प से खुश भी रहेगा। जरूरी नहीं की हर बात के लिए हामी ही  भरने पड़े  कभी-कभी बातों को ना कहने का तरीका बदल लेना भी जरूरी है ।

बच्चों को अकेले में  टोके-  अक्सर माता-पिता बच्चों को बाकी परिवार के सदस्यो,  आसपास के पड़ोसी या मेहमानों के बीच मे टोक  देते हैं या मना कर देते हैं ऐसा करने से आप अपने बच्चे का एक  तरीके से  अपमान कर रहे होते हैं, जिस कारण बच्चे बेज्जती महसूस करते हैं इसीलिए हमेशा उन्हें अकेले में बैठ कर बात को समझाएं और हां या ना में उत्तर दें । हमेशा सभी के सम्मुख अपने बच्चे की तारीफ करें और उन्हें  यह काम के लिए प्रोत्साहन दें ।

बच्चों में अच्छी आदतें डालने के लिए पहले खुद अच्छी आदतों अपनाना पड़ेगा आपकी एक छोटी सी गलत आदत आपके बच्चे में भी आपके प्रति हीन भावना पैदा कर सकती हैं। ऊपर दिए गए बहुत सारे विकल्प आपके लिए  बहुत उपयोगी साबित हो सकते है, केवल जरूरत है समझने और समझाने की, बातों को इस तरीके से कहा और समझाया जाए जिसमें आपकी बात भी रह जाए और काम भी बन जाए ।

 


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