क्या आप भी बच्चे को कम उम्र में स्कूल भेजने के पक्ष में हैं! तो जान लें ये सच्चाई

Ideal Age For A Child To Start School (Pic:scoonews)

आजकल के कंपटीशन भरे जमाने में हर कोई आगे बढ़ना चाहता है, फिर चाहे वह किसी भी उम्र का क्यों ना हो! आगे बढ़ने की दौड़ में तो अब छोटे बच्चे भी शामिल हो गए हैं, माता पिता द्वारा बच्चों को उनकी  स्कूल जाने वाली उम्र समय से पहले ही उन्हें स्कूल भेजना शुरू कर दिया जा रहा है। बच्चे 2 से 5 साल की उम्र के बीच  शारीरिक और मानसिक रूप से बढ़ रहे होते हैं, आज  उसी उम्र में  उन्हें स्कूल में दाखिला दिलवा कर माता-पिता उनसे उन्हीं का बचपन छीन रहे हैं।

जिस उम्र में बच्चों को उठना बैठना भी सही ढंग से नहीं आता, उस उम्र में आज वह किताबों से भरे बैग का बोझ उठा रहे हैं। अधिकतर लोगों को लगता है कि कम उम्र में स्कूल भेजने से बच्चों को शिक्षा का ज्ञान जल्दी हो जाता है, जबकि वो यहां गलत हैं,  क्योंकि हर बच्चे का चीजों को समझने और ग्रहण करने का तरीका अलग अलग होता है। सभी बच्चों  का मानसिक विकास एक जैसा नहीं होता परंतु माता-पिता एक दूसरे के बच्चों को देखकर अपने बच्चे को भी उन्हीं में शामिल कर देते हैं ।


बहुत सारे अध्ययन और एक्सपर्ट्स  द्वारा यह पता चला है कि बच्चों के लिए स्कूल में दाखिला करवाने का समय 5 वर्ष की आयु ही  बेहतर मानी गई है, क्योंकि इस उम्र में बच्चा काफी हद तक चीजों को समझ सकता है और उसमें चीजों को समझने, देखने और महसूस करने की सही  क्षमता होती है। इससे कम आयु में स्कूल भेजकर बच्चों में शिक्षा का ज्ञान तो आ सकता है परंतु उसके विपरीत उनके स्वभाव में होने वाले बदलाव का भी असर पड़ता है ।

 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे ठीक ढंग से बोल और चीजों को समझ नहीं पाते हैं, ऐसे में उन्हें स्कूल भेजकर उनके लिए ही एक चुनौती खड़ी हो जाती है। ऐसे में जब बच्चा ठीक ढंग से बोलेगा नहीं तो वह अपनी बात अपने साथी और अध्यापकों के बीच में रख नहीं पाएगा और ऐसे में वह  खुद को सभी से अलग समझेगा। 

इतना ही नहीं छोटे बच्चे एकदम से किसी अनजान लोगों या  व्यक्ति के पास नहीं जाते, क्योंकि वह अभी अपने माता पिता और परिवार के सदस्यों के साथ ही घुले मिले होते हैं। कभी-कभी तो बच्चे अपनी उम्र से छोटे या बड़े बच्चों के साथ खुद को एडजस्ट नहीं कर पाते तो ऐसी अवस्था में स्कूल में पढ़ाई लिखाई या अन्य किसी चीज को सीखने की असंभावनाएं उनमें नजर आती है।


 कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने के नुकसान

स्वभाव में बदलाव - छोटे बच्चों को स्कूल और घर के बीच का सही  ढंग से अंतर भी नहीं पता होता,  और ऐसे में उन्हें  स्कूल भेजना सही नहीं होगा। बच्चे की प्रथम पाठशाला उसके घर और परिवार से ही है, उसे घर पर ही स्कूल में होने वाली गतिविधियों के बारे में बताएं और घर का माहौल  कुछ समय के लिए ही स्कूल जैसा ही बना दिया जाए, ताकि बच्चे को आगे चलकर अलग ना महसूस हो, अन्यथा नई चीज और अपनी क्षमता से अधिक व अलग चीजों को देखकर बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा हो सकता है।

 सेहत पर असर -  छोटे बच्चों को बोतल में दूध पीने की आदत और मां के हाथों से खाने की आदत होती है, ऐसे में उन्हें स्कूल भेजना  उनकी सेहत के साथ खिलवाड़  करने के बराबर है, क्योंकि स्कूल में आपका  बच्चा अन्य किसी  के हाथ से खाना खाएंगा या नहीं खाएंगा इस  बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। वहीं भूख लगने पर उनके हिसाब से कुछ मिल पाएगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती। ऐसे में बच्चे काफी देर तक भूखे रहते हैं जिस कारण कई बीमारियां उन्हें लग सकती हैं  ।


प्रेम का अभाव- छोटे बच्चों को  घर पर सभी का प्यार मिलता है, लेकिन स्कूल  में वे  अधिकतर समय अपने अध्यापकों और साथियों के साथ व्यतीत करते हैं । वहां पर उन्हें एक समान देखा जाता है और प्यार भी मिलता है, लेकिन घर वाला लाड- प्यार उन्हें वहां दिखाई नहीं देता जिस वजह से खुद को प्रेम के अभाव  से देखते हैं ।


 सही उम्र में स्कूल भेजने के फायदे

 स्कूल जाने की इच्छा -  बच्चा जब 5 वर्ष का हो जाता है तो वह बहुत सी चीजों को ग्रहण करने के  सक्षम हो जाता है। उसे बहुत सारी चीजों का ज्ञान भी हो जाता है, जैसे कि किसी से हेलो या नमस्कार करके बात करना,  हंसी वाली बातों पर मुस्कुरा देना,  रोने वाली बातों पर रो देना,  फैसियल एक्सप्रेशन की समझ,  कुर्सी पर उठना बैठना,  अपने सामान को अपने हिसाब से रखना, आदि बहुत सी चीजें बच्चे सीख जाते हैं और उन्हें घर और स्कूल का अंतर भी पता चल जाता है।  बच्चों को अपनी मां और मैडम में फर्क पता होता है तोः वे  उसी तरीके से उनकी बात को समझ पाते हैं और जवाब दे पाते हैं।  5 वर्ष के बच्चों को स्कूल के दोस्त, स्कूल में झूले झूलना और ड्राइंग कॉपी पर ड्राइंग करना अनेकों काम पसंद आते हैं, इस वजह से वह स्कूल जाना पसंद करते हैं ।


क्रिएटिविटी करना-  इस उम्र के बच्चे कक्षा में कुछ न कुछ नया सीखते हैं और अध्यापकों द्वारा मिला प्रोत्साहन उन्हें कुछ नया करने का जज्बा देते हैं जिस वजह से वह स्कूल में जाकर अपने साथियों के साथ नई नई चीजों में पार्टिसिपेट करते हैं, नई-नई क्रिएटिविटी करके खुद में एक अलग पहचान बनाते हैं ।

 

अनुशासन में रहना - सही उम्र में स्कूल जाने वाले बच्चे सही अनुशासन और आदतों को ग्रहण करते हैं और उन्हें फॉलो  की करते हैं। टीचर द्वारा बताई गई हर बात उन्हें सही समझ आती है और वह उसी हिसाब से अपने कार्य को करते भी हैं।  यहां तक की इस उम्र के बच्चे अपने से छोटे बच्चों को भी बात समझाने के सक्षम होते हैं, उनकी सही और गलत चीजों का अंदाजा लगा कर कुछ गलत होने से रोकते हैं ।

 

शारीरिक विकास-  इस उम्र में बच्चे स्कूल में काफी खेलकूद प्रतियोगिता में भाग लेते रहते हैं जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छा होता है। स्कूल द्वारा रोजाना पौष्टिक आहार लाने वाले कांसेप्ट को अपनाकर बच्चे अच्छा खाना खाते हैं जिससे उनकी सेहत पर अच्छा असर पड़ता है।


 जरूरी सूचना

जिन बच्चों को अभी खुद से  ही कुछ करने की क्षमता/ ज्ञान  ना हो उन्हें अलग से कुछ और समझाना सही निर्णय नहीं होगा। बच्चों को स्कूल भेजने से  पहले हर माता-पिता का कर्तव्य है, कि वह स्कूल में पढ़ रहे बाकी बच्चों की उम्र, स्कूल का वातावरण,  शिक्षकों का एक्सपीरियंस,  खाने पीने की सुख-सुविधाओं की जानकारी लें। दूसरों की देखा देखी ना करते हुए अपने बच्चों की सही उम्र का इंतजार करके ही बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलवाए।  

माना कि जमाना आगे बढ़ रहा है परंतु उसके लिए जरूरी नहीं कि अपने बच्चों को उम्र से पहले ही बड़ा कर दिया जाए। बच्चों को बेसिक एजुकेश,  डिसिप्लिन खाने-पीने और उठने बैठने के तौर तरीके, आपसी मेलजोल अच्छी आदतों का पाठ आप घर से भी सिखा सकते हैं। जब आपका बच्चा स्कूल जाने की उम्र में आ जाएगा तो आपके द्वारा पढ़ाए गए पाठ और स्कूली शिक्षा बच्चे को  होनहार अपने आप बना देगी।  जरूरत है केवल सही जानकारी सोच और बच्चे की सही उम्र का होना ।

 

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