विकर्ण चरितं - Vikarna Character in Mahabharata, Hindi Article

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यूं तो विकर्ण को सौ कौरव पुत्रों में ही गिना जाता है, लेकिन विकर्ण का चरित्र बाकी कौरवों से सर्वथा अलग था. 

कथाओं के अनुसार विकर्ण को महारानी गांधारी ने जन्म नहीं दिया था, बल्कि वह एक दासी पुत्र (Dasi Putra Vikarna) था. इसके पीछे कारण यह था कि कुंती का पुत्र 'धर्मराज युधिष्ठिर' के रूप में पहले पैदा हो गया था, और यह जानकार कार्यकारी हस्तिनापुर सम्राट धृतराष्ट्र अपनी पत्नी गांधारी से अत्यधिक क्रोधित हो उठे.

उसे दोषी जानकर गांधारी के ही दासी के साथ धृतराष्ट्र ने दैहिक संबंध स्थापित किया, और बाद में दासी ने पुत्र को जन्म दे दिया. यह दासी पुत्र धृतराष्ट्र का तीसरा पुत्र कहलाया. महाभारत-प्रेमियों को ज्ञात है ही कि गांधारी ने अपने सभी पुत्रों को कलश के जरिए जन्म दिया था. 

कुरुवंश ने दासी को तो नहीं अपनाया, उसके पुत्र को अवश्य अपनाया, एवं उसे विकर्ण नाम दिया.
ऐसा माना जाता है कि विकर्ण सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन की ही भांति धनुर्विद्या में निपुण थे, किन्तु दुर्योधन कभी नहीं चाहता था कि विकर्ण की वीरता सबके सामने प्रकट हो, इसलिए वह विकर्ण को हमेशा पीछे ही रखना चाहता था. शिक्षा के पश्चात जब आचार्य द्रोण ने अपनी गुरु-दक्षिणा मांगी, तब विकर्ण कौरवों की तरफ से पांचाल नरेश ध्रुपद को हारने में सक्षम था, किन्तु उसकी नीतिगत बातों को दुर्योधन ने तवज्जो नहीं दिया, और अंततः दुर्योधन सहित सभी कौरव ध्रुपद द्वारा बंदी बना लिए गए थे. 

परन्तु, इससे आगे बढ़कर विकर्ण का चरित्र (Vikarna Character) तब सामने आता है, जब हस्तिनापुर की भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण करने को दुशासन उतावला था, तब विकर्ण ने सबके सामने दुर्योधन एवं दुशासन को धिक्कारा था. 

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नीतिगत बातें कहते हुए विकर्ण ने सबको चेताया था. विकर्ण के समझाने पर भी दुर्बुद्धि दुर्योधन पर जब कोई फर्क नहीं पड़ा, तब उसने लंबी सांस ली और हाथ मलते हुए कहा...  

भूपालो! राजाओं के चार दुर्व्‍यसन बताए गए हैं- शिकार, मदिरापान, जुंआ तथा विषय भोग में अत्‍यन्‍त आसक्ति. ‘इन दुर्व्‍यसनों में आसक्‍त मनुष्‍य धर्म की अवहेलना करके मनमाना बर्ताव करने लगता है.

विकर्ण की बातों से दुर्योधन सहित समूचा कौरव पक्ष निरूतर हो गया, तब दुर्योधन की ओर से कर्ण ने कुतर्क करते हुए उसे कौरव-पक्ष को हानि पहुंचाने वाला बताया, और जो बाद में हुआ, वह भला कौन नहीं जानता है. 

हालाँकि, युद्धभूमि में वह अपने पक्ष से लड़ते हुए भीम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ. महाबली भीम उससे युद्ध नहीं करना चाहते थे, किन्तु नीतिवान विकर्ण अपना कर्तव्य भलीभांति समझता था, और यही वह कारण है कि यह लेख हम सब पढ़ रहे हैं, और उस विकर्ण को आज भी याद कर रहे हैं. 

प्रत्येक परिवार में अगर अधिक से अधिक लोग विकर्ण की भांति हों, जो अन्याय का विरोध कर सकते हों, तो फिर अन्याय हो ही क्यों? - Family Values in Vikarna

धन्य हैं ऐसे महावीर, जो ताकतवर और अपने पक्ष की सत्ता होते हुए भी, अन्याय-अधर्म का सभा के बीच में विरोध करने का साहस रखते हैं. ऐसे महापुरुषों के चरित्र से काफी कुछ सीखा जा सकता है. 

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